हास्य रस की परिभाषा

                       हास्य रस की परिभाषा
जहाँ किन्ही विचित्र स्थितियों या परिस्थितियों के कारण हास्य की उत्पत्ति होती है उसे ही हास्य रास कहा जाता है । इसका स्थायी भाव हास होता हैं । इसके अन्तर्गत वेशभूषा, वाणी आदि की विकृति को देखकर मन में जो विनोद का भाव उत्पन्न होता है उससे हास की उत्पत्ति होती है, इसे ही हास्य रस कहा जाता है ।
 उदाहरण:-
              पैसा पाने का तुझे बतलाता हु प्लान । 
              कर्ज लेकर बैंक से, हो जा अंतर्धान।।


अन्य उदाहरण:-
                 सीरा पर गंगा हसै, भुजानि में भुजंगा हसै
                 हास ही को दंगा भयो, नंगा के विवाह में

                  ह्रै ह्रै सिला सब चन्द्रमुखी परसे पद मंजुल कंज                    तिहारे ।
                  कीन्ही भली रघुनायक जू! करुना करि कानन                      को पगु धारे।।
   

इसका स्थाई भाव:-
हास 

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